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कानपुर कार्डियोलॉजी में मात्र दस हजार में लगेगा इंसान का वॉल्व, लंबे समय तक धड़केगा दिल

कानपुर 25 दिसम्बर 2018 (महेश प्रताप सिंह). ठंड का मौसम शुरू होते ही हृदय रोगियों की परेशानी बढ़ जाती है। अस्पतालों में गंभीर मरीजों को वाल्व बदलने की सलाह दी जाती है। लेकिन महंगे वाल्व बदलवाने के लिए हर मरीज की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होती है। लेकिन अब ऐसे दिल के रोगियों के लिए राहत भरी खबर। उनके वॉल्व की गड़बड़ी न सिर्फ बेहतर ढंग, बल्कि बहुत ही सस्ते में दूर हो सकेगी। 


लक्ष्मीपत सिंहानिया हृदयरोग संस्थान (कार्डियोलॉजी) में असली वॉल्व का प्रत्यारोपण शुरू हो जाएगा। इसके लिए बेंगलुरु के सत्यसाईं इंस्टीट्यूट और हृदय रोग संस्थान के बीच अगले वर्ष एमओयू साइन होने वाला है। वहां से निःशुल्क वॉल्व आएंगे, जिस पर मरीजों को 5 से 10 हजार रुपये में ऑपरेशन कर लगा दिए जाएंगे। अभी मेटल या जानवरों का वॉल्व लगाया जाता है, जिसकी कीमत 65 हजार से ढाई लाख रुपये के बीच है। मरीजों को दवाओं के साथ काफी परहेज करना पड़ता है। इन वॉल्व की उम्र भी अधिक नहीं होती है। 

बनाया जायेगा वॉल्व बैंक -

कार्डियोलॉजी में इसके लिए यहां वॉल्व का बैंक बनाया जायेगा। पहले चरण में सत्यसाईं इंस्टीट्यूट की ओर से मिलने वाले वॉल्व से बैंक स्थापित किया जायेगा। इसमें मरीजों की संख्या के मुताबिक वॉल्व रखे जाएंगे। संस्थान अपने यहां बैंक स्थापित के लिए भी आवेदन करने जा रहा है।

अभी एक वॉल्व पर होता इतना खर्च -

मेटल का वॉल्व 30 से 90 हजार और बायोलॉजिकल वॉल्व 65 हजार से ढाई लाख रुपये का आता है। मेटल वाले में हमेशा खून पतला करने वाली दवाएं खानी पड़ती हैं। नियमित जांच की आवश्यकता होती है। बायोलॉजिकल वॉल्व की उम्र 8-10 साल होती है।

यहां बन चुके बैंक -

डॉ.राकेश वर्मा के मुताबिक नई दिल्ली स्थित एम्स और जीबी पंत हॉस्पिटल में वॉल्व बैंक स्थापित हो चुके हैं। बेंगलुरु के संस्थान को भी जनवरी तक लाइसेंस मिल जायेगा। वहां पोस्टमार्टम के दौरान वॉल्व निकाले जायेंगे।

शव संक्रमित होने से पहले निकाल सकते वॉल्व - 

चिकित्सकों ने बताया कि शव संक्रमित होने से पहले वॉल्व निकाले जा सकते हैं। इसमें समय सीमा नहीं होती है लेकिन अगर संक्रमण है तो वह वॉल्व काम के नहीं होते, इसीलिए निकालने से पहले पूरी जांच की जाती है। वॉल्व को बॉक्स में सुरक्षित किया जाता है, उस बॉक्स का निश्चित तापमान होता है, उसे ले जाने में कोई दिक्कत नहीं होती है।

इसलिए है सुरक्षित -

वॉल्व निकालने के बाद उसे नॉन एंटीजेनिक और स्टरलाइज किया जाता है, इससे उनकी उम्र बढ़ जाती है। अभी कार्डियोलॉजी में दो से तीन वॉल्व के ऑपरेशन रोजाना किए जा रहे हैं। कार्डियोलॉजी इंस्टीट्यूट के निदेशक डॉ. विनय कृष्ण बताते हैं कि असली वॉल्व (होमोग्राफ्ट) से रोगियों को काफी सहूलियत मिलेगी। उनके इलाज का खर्चा बहुत ही कम हो जायेगा। यह प्रत्यारोपण अप्रैल से शुरू करने की तैयारी है।