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शिवली के डॉन विकास दुबे पर दर्ज हैं 5 दर्जन से ज्‍यादा एफआईआर

कानपुर (सूरज वर्मा). चौबेपुर थाना क्षेत्र के बिकरू गांव में बीती देर रात कुख्यात हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे द्वारा की गयी ताबड़तोड़ फायरिंग में सीओ समेत आठ पुलिसकर्मी शहीद हो गए। आईये जानते हैं शिवली के डॉन की पूरी कहानी. शिवली क्षेत्र के बिकरू गांव निवासी कुख्यात हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे ने होश सम्‍भालते ही अपना खुद का गैंग बना कर लूट, डकैती मर्डर जैसे जघन्य अपराधों को अंजाम देना शुरू कर दिया था। आलम ये था कि कानपुर नगर से लेकर देहात तक में इसकी सल्तनत कायम थी। पंचायत, निकाय, विधानसभा से लेकर लोकसभा चुनाव के वक्त राजनेताओं को बुलेट के दम पर बैलेट दिलवाना इसका पेशा बन गया था। इसी दौरान इसके संबंध सपा, बसपा, भाजपा के बड़े नेताओं से हो गए। सूत्रों के अनुसार डॉन विकास दुबे पर यूपी में 60 से ज्‍यादा एफआईआर दर्ज हैं. 



वर्ष 2001 में इसने भाजपा सरकार के दर्जा प्राप्त मंत्री को थाने के अंदर घुसकर गोलियों से भून डाला था। हाई प्रोफाइल मर्डर के बाद शिवली के डॉन ने कोर्ट में सरेंडर कर दिया और कुछ माह के बाद जमानत पर बाहर आ गया। इसके बाद इसने राजनेताओं के सरंक्षण से राजनीति में इंट्री की। इस कुख्यात हिस्ट्रीशीटर ने प्रधान और नगर पंचायत अध्यक्ष का चुनाव जीता था। विकास दुबे के खिलाफ 60 से ज्यादा मामले यूपी के कई जिलों के थानों में चल रहे हैं। इस पर पुलिस ने 25 हजार का इनाम रखा हुआ था। हत्या व हत्या के प्रयास के मामले पर पुलिस इसकी तलाश कर रही थी। हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे की यूपी के चारों राजनीतिक दलों में अच्छी पकड़ थी। 2002 के वक्त तब मायावती सूबे की सीएम थीं, तब इसका सिक्का बिल्हौर, शिवराजपुर, रनियां, चौबेपुर के साथ ही कानपुर नगर में चलता था। इस दौरान इसने जमीनों पर अवैध कब्जे के साथ अन्य गैर कानूनी तरीके से संपत्ति बनाई। 


जेल में रहने के दौरान इसने शिवराजपुर से नगर पंचायत अध्यक्ष का चुनाव जीता था। बसपा सरकार के एक कद्दावर नेता से इसके गहरे संबंध थे। चुनाव की आहट मिलते ही इसने पैर बाहर निकाले और इसी के बाद इसकी गिरफ्तारी का आदेश आ गया। जानकारों का कहना है कि भाजपा के एक विधायक से इसका छत्तीस का आकड़ा था और बिल्हौर, शिवराजपुर, चौबेपुर नगर पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी पर अपने खास लोगों को जिताने के लिए लगा रखा था। 1996 के विधानसभा चुनाव के दौरान चौबेपुर विधानसभा सीट से हरिकृष्ण श्रीवास्तव और भाजपा के संतोष शुक्ला के बीच तगड़ा मुकाबला हुआ। विकास दुबे ने श्रीवास्तव को जिताने का फरमान जारी कर दिया। इस दौरान संतोष शुक्ला और विकास के बीच कहासुनी हुई। इलेक्शन हरिकृष्ण श्रीवास्तव जीत गए। विकास और इसके गुर्गे जश्न मना रहे थे। इसी दौरान संतोष शुक्ला वहां से गुजर रहे थे। विकास ने उनकी कार को रोक कर गाली-गलौज शुरू कर दी। दोनों तरफ से जमकर हाथा-पाई हुई। इसी के बाद से विकास ने संतोष शुकला को खत्म करने की ठान ली। पांच साल तक संतोष शुक्ला और विकास के बीच जंग जारी रही और इस दौरान दोनों तरफ के कई लोगों की जान भी चली गई। 


जब 2001 में यूपी में भाजपा सरकार बनी तो संतोष शुक्ला को दर्जा प्राप्त मंत्री बनाया गया। उसी वक्त विकास बसपा के साथ ही भाजपा नेताओं के संपर्क में आ गया। भाजपा नेताओं ने संतोष शुक्ला और विकास के बीच सुलह करानी की कोशिश की, लेकिन वे कामयाब नहीं रहे। उसी दौरान संतोष शुक्ला ने सत्ता की हनक के बल पर इसका एनकाउंटर कराने का प्लान बनाया। जिसकी भनक विकास को हुई तो ये संतोष को मारने के लिए अपने गुर्गो के साथ निकल पड़ा। 2001 में संतोष शुक्ला एक सभा को संबोधित कर रहे थे, तभी विकास अपने गुर्गों के साथा आ धमका और संतोष शुक्ला पर फायरिंग शुरू कर दी। वो जान बचाने के लिए शिवली थाने पहुंचा, लेकिन विकास वहां भी आ धमका और लॉकप में छिपे बैठे संतोष को बाहर लाकर मौत के घाट उतार दिया था। दर्जा प्राप्त मंत्री संतोष शुक्ला के मर्डर के बाद पुलिस विकास दुबे के पीछे पड़ गई। कई माह तक ये फरार रहा और तब सरकार ने इसके सिर पर पचास हजार का इनाम घोषित कर दिया। 



खबरों के मुताबिक पुलिस एनकाउंटर में मारे जाने के डर के चलते ये अपने खास भाजपा नेताओं की शरण में गया। जहां उन्होंने अपनी कार में बैठाकर इसे लखनऊ कोर्ट में सरेंडर करवाया। कुछ माह जेल में रहने के बाद इसकी जमानत हो गई और बाहर आते ही फिर इसने अपना आंतक शुरू कर दिया। संतोष शुक्ला केस में इसके खिलाफ जितने गवाह थे वो डर के चलते मुकर गए और कोर्ट ने इसे बरी कर दिया। विकास दुबे वर्तमान में भाजपा के साथ ही जुड़ा था, लेकिन इसी दल के एक विधायक से इसकी नहीं पट रही थी। विकास बिल्हौर, चौबेपुर, शिवराजपुर में अपने लोगों को टिकट दिलाने के लिए लगा था। इसी के बाद भाजपा के एक खेमे ने इसकी शिकायत सीएम से कर दी। इसी के बाद विकास दुबे की गिरफ्तारी का फरमान जारी हुआ था। 




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