गौमाता का हाल बेहाल, ये गौशाला है या बूचड़खाना ??
कानपुर (गुड्डू सिंह). उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के
कार्यकाल में भले ही गौ संरक्षण पर कितने भी प्रभावी कार्यों के दावे
घोषणाओं में हो रहे हैं, किंतु जमीनी हकीकत कुछ और ही है। इसकी पोल तब खुली
जब पनकी में गौ संरक्षण हेतु नगर निगम के सौजन्य से चल रही गौशाला में
सामाजिक संस्था "उम्मीद एक किरण" गौ सेवा की भावना के चलते अपनी संस्था के
प्रशिक्षु चिकित्सकों को लेकर यहां पहुंची। यहां पर रह रही बेहद कमजोर
गायों के हाल बद से बदतर थे। उन्हें देखकर लगता नहीं था, कि वह गाय गौशाला
में हैं, बल्कि प्रतीत होता था कि वो किसी बूचड़खाने में हताश पड़ी हों।
आलम
यह था कि कई गायों के थन खून रिस रहा था, कुछ गायों की आंखों का इलाज ना
होने से कीड़े पड़े थे। इसी तरह गाय के तमाम बेजुबान बच्चे मरणासन्न अवस्था
में पड़े थे। कुछ इलाज के अभाव में हांफते हांफते मुंह से झाग उगलते
जगह-जगह अचेत पड़े थे।
"उम्मीद
एक किरण"संस्था के मयंक त्रिपाठी ने जब इन बेजुबान गायों की दीन दशा देखकर
यहां के केयरटेकर प्रांशु से चिकित्सकों को बुलाने के लिए कहा तो वहां पर
एक ही प्रशिक्षु चिकित्सक योगेंद्र पाल की ही मौजूदगी दिख सकी। जबकि गौशाला
में प्रबंधन के अनुसार चार पशु चिकित्सक यहां पर कार्यरत हैं। बीमार हुई
जख्मी गाय ऐसे हालत में पड़ी थी की संस्था के साथ गए पशु चिकित्सको का कहना
था कि जख्मी गायों को किसी तरह का ना ही आज और ना पहले ही कभी कोई उपचार
दिया गया है।
चौंकाने
की बात यह थी कि सामाजिक संस्था के साथ गए पशु चिकित्सकों को यहां के
एकमात्र चिकित्सक डॉ इंद्रपाल गाय के जख्मी हिस्से में पड़ चुके कीड़ों का
मामूली इलाज भी मौके पर उपलब्ध नहीं करा सके। गौशाला के केयरटेकर प्रांशु से जब इस बाबत पूछा गया तो उन्होंने
कहा कि गायों की देखभाल के लिए 50 कर्मचारियों के साथ 4 सरकारी चिकित्सक
भी हैं। जो पूरा कार्य देखते हैं। मुझे आवश्यकता के अनुसार जरूरी चीजें
उपलब्ध कराने के लिए बाहर जाना पड़ता है, किंतु गायों की दशा के दोषी सीधे
यहां पर तैनात डॉक्टर हैं। एक सवाल के जवाब में बताया उन्होंने बताया कि
चिकित्सकों की लापरवाही की शिकायत शीघ्र ही लिखित रूप से नगर निगम प्रशासन
से की जाएगी। जिससे उनकी छवि पर बट्टा ना लगे।
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