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इस्लाम में फितना की मनाही - मौलाना अजीज अहमद


कानपुर (वसीम अंसारी). आल इण्डिया सुन्नी जमियत-उल-उलेमा के सदस्‍य मौलाना अजीज अहमद का कहना है कि इस्लाम में फितना की मनाही है। इस्लाम हमेशा से शान्तिपूर्ण और सौहार्दपूर्ण वातावरण बनाने के लिए सहनशीलता का मार्ग अपनाने का सन्देश देता है। कुरानपाक की आयतों में लिखा है कि "फितना उत्पीड़न रक्तपात से भी ज्यादा बुरा है" (2:217) और “अल्लाह की राह में उन लोगों से लड़ो जो तुमसे लड़ें, किन्तु कभी भी ज्यादती ना करो। निःसन्देह अल्लाह ज्यादती करने वालों को कभी भी पसन्द नहीं करता '' (2:190).


इस्लाम के साथ-साथ सभी धर्मों की हिदायतों के हिसाब से अगर फितना हराम है तो सवाल उठता है कि क्यों फिर पूरी दुनियां में आत्म-हत्या, बम विस्फोट और निर्दोष नागरिकों का नरसंहार जैसी घटनाएं घट रही हैं। चूंकि निर्दोष लोग शान्ति के रक्षक होते हैं, इसलिए इस तरह की हत्या इन सभी धर्मों के पाक-उपदेशों का उल्लंघन करती हैं। कुरान की आयतें कहती हैं कि “तुम उनसे लड़ो यहाँ तक कि फितना शेष न रह जाए और दीन (धर्म) अल्लाह के लिए हो जाए। अत: यदि वे बाज़ आ जाए तो अत्याचारियों के अतिरिक्त किसी के विरूद्ध कोई कदम उठाना ठीक नहीं" और "फिर यदि वे बाज़ आ जाये तो अल्लाह भी उन्हें माफ कर देता है जो अत्यन्त दयावान है" (2:192). कुरान भी अमन और शान्ति का सन्देश ही देती है।


इस्लाम में जिहाद का अर्थ युद्ध नहीं है बल्कि अल्लाह की मर्जी को हर स्तर जैसे कि व्यक्तिगत, सामाजिक और राजनीतिक स्तर पर लागू करने के लिए संघर्ष करना होता है। पैगम्बर मोहम्मद ने युद्ध से लौटते वक्त अपने साथियों से कहा था कि हम छोटे जिहाद (युद्ध) से बड़े जिहाद (अपने समाज और लोगों के दिल से गलत काम निकालने का अधिक जरूरी और महत्वपूर्ण कार्य) की तरफ जा रहे हैं।



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